শ্রীকান্ত: প্রথম পর্ব
(By Sarat Chandra Chattopadhyay)


Size | 29 MB (29,088 KB) |
---|---|
Format | |
Downloaded | 696 times |
Last checked | 16 Hour ago! |
Author | Sarat Chandra Chattopadhyay |
छुटपन से इसी तरह तो बूढ़ा हुआ। अपने-बिराने सबके मुँह से लगातार छिह-छिह सुनते-सुनते आप भी अपने जीवन को एक बहुत बड़ी छिह-छिह के सिवाय और कुछ नहीं सोच सका; लेकिन जिंदगी के प्रातःकाल ही में छिह-छिह की यह लंबी भूमिका कैसे अंकित हो रही थी; काफी समय के बाद आज उन भूली-बिसरी कहानियों की माला पिरोते हुए अचानक ऐसा लगता है कि इस छिह-छिह को लोगों ने जितनी बड़ी करके दिखाया; वास्तव में उतनी बड़ी नहीं थी। जी में होता है; भगवान् जिसे अपनी विचित्र सृष्टि के ठीक बीच में खींचते हैं; उसे अच्छा लड़का बनकर इम्तहान पास करने की सुविधा भी नहीं देते; गाड़ी-पालकी पर सवार हो बहुत लोग; लश्कर के साथ घूमने और उसे ‘कहानी’ के नाम से छपाने की अभिरुचि भी नहीं देते। शायद हो कि थोड़ी-बहुत अकल उसे देते हैं; लेकिन विषयी लोग उसे सुबुद्धि नहीं कहते। इसलिए प्रवृत्ति ऐसों की ऐसी असंगत और बेतुकी होती है और देखने की वस्तु तथा तृष्णा स्वाभाविकतया ऐसी आवारा हो उठती है कि उसका वर्णन कीजिए तो सुधीजन शायद हँसते-हँसते बेहाल हो उठें। उसके बाद वह बिगड़े दिल लड़का अनादर और उपेक्षा से किस तरह बुरों के खिंचाव से बुरा होकर; धक्के खाकर; ठोकरें खाकर अनजाने ही एक दिन बदनामी की झोली कंधे से झुलाए कहाँ खिसक पड़ता है; काफी अरसे तक उसकी कोई खोज-खबर ही नहीं मिलती।”