विकलांग श्रद्धा का दौर

(By Harishankar Parsai)

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Author Harishankar Parsai

“Book Descriptions: श्रद्धा ग्रहण करने की भी एक विधि होती है| मुझसे सहज ढंग से अभी श्रद्धा ग्रहण नहीं होती| अटपटा जाता हूँ| अभी 'पार्ट टाइम' श्रधेय ही हूँ| कल दो आदमी आये| वे बात करके जब उठे तब एक ने मेरे चरण छूने को हाथ बढाया| हम दोनों ही नौसिखुए| उसे चरण चूने का अभ्यास नहीं था, मुझे छुआने का| जैसा भी बना उसने चरण छु लिए| पर दूसरा आदमी दुविधा में था| वह तय नहीं कर प् रहा था कि मेरे चरण छूए य नहीं| मैं भिखारी की तरह उसे देख रहा था| वह थोडा-सा झुका| मेरी आशा उठी| पर वह फिर सीधा हो गया| मैं बुझ गया| उसने फिर जी कदा करके कोशिश की| थोडा झुका| मेरे पाँवो में फडकन उठी| फिर वह असफल रहा| वह नमस्ते करके ही चला गया| उसने अपने साथी से कहा होगा- तुम भी यार, कैसे टूच्चो के चरण छूते हो|”